धूप स्नान का महत्व | Importance of Sun Bath in Hindi

बाइबिल में एक वाक्य आता है- ‘प्रकाश हो और प्रकाश हो गया’। परन्तु इससे अधिक भी कुछ हुआ। एक निर्मातृ शक्ति पैदा हुई। निर्माण के लिए, रोगमुक्ति के लिए तथा जीवन धारण के लिए शक्ति रूप सूर्य की उपस्थिति हुई।
वर्तमान विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि सूर्य के प्रकाश में अनेक तत्व हैं। उसमें ‘स्पेक्ट्रम’ के अनेक रंग हैं- बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी, लाल आदि।
विभिन्न प्रकाश किरणों का भिन्न-भिन्न तरंग दैर्ध्य (वेव-लेंथ) होता है। शार्ट अल्ट्रावायलेट का रासायनिक दृष्टि से हम पर प्रभाव पड़ता है और ‘लांग’ किरणों का भौतिक दृष्टि से।
अल्ट्रावायलेट किरणें त्वचा की पहली तह से नीचे नहीं जा सकतीं।
पर, उसका क्रियाकलाप एक ऐसी प्रक्रिया प्रारम्भ कर देता है, जिसके फलस्वरूप नये कोष का जन्म होता है – विशेष रूप से 6 डीहाइड्रोकोले स्टेरिन जो विटामिन-डी बन जाता है।
यह सूखा रोग का परम शत्रु है।
हेरोडोटस के समय में भी सूर्य का महत्त्व ज्ञात था कि सूर्य उष्मा प्रदायक है,वह मनुष्य में स्वास्थ्य उत्पन्न करता है तथा स्वास्थ्यदायक है। उन देशों में सूर्य स्नान की व्यवस्था थीप्रथम ओलम्पिक खिलाड़ियों ने शक्ति तथा सहन शक्ति बढ़ाने के लिए एक सौर सम्प्रदाय को जन्म दयाथा।
हिप्पोक्रेट्स ने नियमित धूप स्नान की सलाह दी है। ऐंटिलस धूप स्नान और सूर्य प्रकाश का उपयोग बहुत कुछ अर्वाचीन ढंग से करता था।
सहज अंत:प्रेरणावश लोगों का आकर्षण सूर्य की ओर हुआ पर वे उसके कारण को नहीं जानते थे। मध्यकालीन युग में धूप के महत्त्व और उससे प्राप्त लाभ के सम्बंध में लोगों का ज्ञान घटा। धूप चिकित्सा वस्तुतः 18 वीं शब्तादी में फ्रांस में पुनरुज्जीवित हुई।
ली मेरी और ली काम्प्ते नामक दो संस्थाओं ने सूर्य का उपयोग रोग निवारण के लिए प्रारम्भ किया।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्राचीन और अर्वाचीन खगोल भौतिक शास्त्रियों की दृष्टि में सूर्य को प्रथम स्थान था।इसके पीछे कारण यह था कि यदि सूर्य न होता, तो न यह पृथ्वी होती और न सजीव प्राणी।
इसी दृष्टि से मैंने भी सूर्य को प्रथम स्नान दिया है -सूर्य, पृथ्वी, हवा और पानी इन्हीं से समस्त चीजें बनी हैं।दीवार में जो स्थान ईंटों का है, वही स्थान
हमारे शरीर में इनका है। उन्हीं के द्वारा हम अपने को स्वस्थ बनाये रख सकते हैं और रोगमुक्त रह सकते हैं।
सूर्य से ही स्वास्थ्य है अब यह बात स्वीकार की जाने लगी है कि सूय की लम्बी किरणें न केवल हमारे शरीर की ऊपरी तह को लाभ
पहुंचाती हैं, बल्कि नाड़ी मंडल को भी नवजीवन देती हैं। इसका अर्थ हुआ कि हमारे आंतरिक अंगों कभी उससे लाभ पहुंचता है।
धूप स्नान का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव रक्तवाहिनी नाड़ियों पर पड़ता है। हमारी अति सूक्ष्म रक्तवाहिनी नाड़ियां इससे शिथिलन पाती हैं।वे नाड़ियां कुछ अधिक मात्रा में रक्त को त्वचा की ऊपरी तह तक लाती हैं। त्वचा अतिरिक्त रक्त प्रवाह से गुलाबी हो जाती है।
धूप स्नान से शरीर का लगभग 30 प्रतिशत रक्त त्वचा की ऊपरी सतह तक आ जाता है।
मांसपेशियों पर धूप का सीधा हितकर प्रभाव पड़ता है। सांस बढ़ जाती है और उपापचय
(मेटाबोलिज्म) बढ़ जाता है। जिन मांसपेशियों को अतिरिक्त शक्ति की आवश्यकता होती है, उनको अतिरिक्त शक्ति मिलती है।
डॉक्टर हीड का कहना है कि शरीर की सतह के कुछ भाग ऐसे हैं, जो नाड़ी मंडल द्वारा आंतरिक भागों से सम्बद्ध हैं।त्वचा की सतह पर लगने वाली धूप इस प्रकार नाड़ी मंडल के माध्यम से आंतरिक अंगों को प्रभावित करती है।
धूप में बैठने से पसीना निकलता है। इससे गुर्दे को, जो अतिरिक्त पानी निकालने का काम करता है, बड़ी सहायता मिलती है।यदि आपको धूप में बैठने से अधिक मात्रा में पसीना निकलने लगे, तो समझ लेना चाहिए कि आप आवश्यकता से अधिक धूप स्नान ले रहे हैं।
धूप स्नान का प्रभाव व्यक्ति के मन पर भी पड़ता है और व्यक्तित्व पर भी।जो अंधेरे और सीलन भरे घर में रहता हो, उसे पतला कपड़ा पहनाकर धूप में बैठने का अवसर दीजिए।कुछ ही दिनों में प्रतिफल सामने आ जायेगा।
धूप आदमी में प्रसन्नता लाती है, उदार बनाती है तथा शुभ इच्छाएं उत्पन्न करती है।जहां धूप कम मिल पाती है, उन देशों की अपेक्षा उन देशों के लोग, जहां अधिक धूप मिलती है, अधिक स्वस्थ और प्रसन्न रहते हैं।
बच्चों एवं वृद्धजनों के लिये धूप स्नान विशेष रूप से लाभदायक है।यह उनके शरीर को आश्चर्यजनक ऊर्जा से भर देता है और बुढ़ापे की हड्डियों को नयी ताकत देता है।इसी कारण सूर्य को भगवान का दर्जा प्राप्त है और उसकी पूजा की जाती है।