Importance of Salt in Hindi
संसार में जितने प्राणी हैं मनुष्य के अलावा कोई भी नमक स्वयं नहीं लेते हैं।मनुष्य उन्हें खिला दे यह अलग बात है। नमक अम्लीय आहार है ।जिस प्रकार शराब की लत पड़ जाती है, जो आसानी से छूटती नहीं, बल्कि जीवन को समाप्त कर देती है, उसी प्रकार नमक भी शराब की भांति एक आदत है।
नमक के बारे में संसार के भिन्न –भिन्न वैज्ञानिकों में मतभेद है किन्तु अधिकांश लोग स्वादकी दृष्टि से बिना गहराई तक अध्ययन किये नमक का पक्ष लेते हैं।
सामान्यतया जो नमक खाया जाता है, उसमें सोडियम धातु एवं क्लोरीन गैस का योग बताया जाता है। ये दोनों ही तत्व प्राकृतिक आहार साग–सब्जी या
अंकुरित अन्न लेने पर उनसे प्राप्त हो जाते हैं, इसलिए जो लोग अधिक साग सब्जी प्राकृतिक रूप से लेते हैं याअंकुरित अन्न, भरपूर लेते हैं। उन्हें जितना चाहिए प्रकृति प्रदत्त जैवकीय नमक (Organic Salt) उनके आहार में ही उपलब्ध हो जाता है किंतु आजकल सब्जियां काटकर धोई जाती हैं, दालों का भी छिल्का उतार देते हैं, आटा छानकर लेते हैं, दूसरे अन्न भी इसी प्रकार व्यवहार में लिये जाते हैं, जिससे पोषण का भाग नष्ट हो जाता है।
यदि सब्जियां धोकर काटी जायें. दालें छिलके सहित बनायें तो उसमें आहार का प्राकृतिक नमक विद्यमान रहता है, ऐसे प्राकृतिक आहार में बाहरी नमक की आवश्यकतानहीं रह जाती है। आहार का प्राकृतिक स्वरूप अपने–आप में अपने सम्पूर्ण गुणों के साथ परमात्मा ने निर्मित किया है,
मनुष्य उस आहार का स्वरूप बदलकर अपने ढंग से बिगाड़ता है। भोजन का स्वाद नमक से अधिक बनता है लेकिन जब यही नमक एक लत बन जाये तो स्वास्थ्य केविपरीत है। प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक हीरालाल जी अपनी
पुस्तक ‘आहार ही औषधि‘ में लिखते हैं कि आहार में नमक स्थिर होने पर शरीर से ज्यों का त्यों बाहर निकाल दिया जाता है और इसके निष्कासन में जीवनी शक्ति का ह्रास होता है। नमक स्वादेन्द्रिय को इस प्रकार निष्क्रिय कर देता है कि प्राणी अन्य व्यसन की भांति उसका भी व्यसनी हो जाता है। नमक कैंसर, आमाशयिक व्रण, मोटापा रोग का एक बड़ा कारण है। ऊसर भूमि, जहां नमक की अधिकता है उसमें कोई औषधि, लता, वनस्पति, फल, पुष्प, वृक्ष उत्पन्न नहीं होतेऔर यदि हुए भी तो अति कमजोर।
चरक संहिता में नमक के सम्बंध में वर्णन है –
ये ह्येनद् ग्राम नगर निगम जन पदाः सतत।मुपयुंजते, तेभूमिष्ठ ग्वासनवः शिथिल मांस शोषित अपरिक्लेश, सहाश्च भवन्ति।अर्थात् जिस ग्राम, नगर, प्रान्त व देश के व्यक्ति इसका निरन्तर उपयोग करते हैं उनको ग्लानि बहुत रहती है और उनके रुधिर, स्नायु तथा मांस शिथिल हो जाते हैं।
उनके निर्बल रहने से वे क्लेश सहने में असमर्थ रहते हैं। और भी कहा है। ये हूयति लवध सात्म्याः पुरुषाः स्तेवामिन खालित्येन्द्रलुप्त पालित्यामि। तथा खलयंचा काले भवीत।अर्थात् जिनको नमक बहुत अनुकूल लगता है, उनके बाल शीघ्र गिर जाते हैं, जल्दी सफेद हो जाते हैं और युवावस्था में ही चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं।
श्रीमद् भगवत गीता जी में भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है –
कट्वाम्ल लवणात्युष्णा तीक्ष्ण रुक्ष विदाहिनः।आहारा राजसस्येष्टा दुःख शोकामय प्रदाः।। गीता 17/1 अर्थात् चरपरे, खट्टे नमकीन, अतिगरम तथा तीक्ष्ण प्रदाहकारक आहार दु:ख, चिन्ता एवं रोगों को उत्पन्न करने वाले होते हैं। संसार दु:ख, चिन्ता और रोग खूब मजे से भुगत रहा है, किन्तु उसे इतना अज्ञान प्रमाद है कि इन चीजों से परहेज नहीं करता। मनुष्य अपनी कमजोरियों के कारण ही दुःख भोगता है।नमक न छोड़ पाना मनुष्य की अपनी कमजोरी है।
नमक और रक्त संचार
रक्त में नमक की उपस्थिति से रक्त गाढ़ा हो जाता है जिससे रक्त संचार क्रिया में बाधा आती है। नमक की उपस्थिति के कारण विजातीय द्रव्य बाहर नहीं निकल पाते, अतः अनेक रोगों का यह कारण बनता है। नमक रक्तचाप बढ़ाता है, नमक दमा, घ्राण शक्ति का लोप, रुधिर विकार, मांस एवं स्नायु की शिथिलता को बढ़ाता है।
नमक और कैंसर
नमक शरीर में वर्तमान पोटेशियम को नष्ट करता है। पोटेशियम के अभाव की पूर्ति एवं नमक का निष्कासन न होने से कैंसर की उत्पत्ति होती है।नमक शरीर संस्थान में हानिप्रद कीटाणु को उत्तेजित कर ट्यूमर बढ़ाता है। इस तथ्य की पुष्टि अमेरिकन कैंसर अनुसंधान शाला के सदस्य डॉ. फ्रेडरिक एल. हाफमैन ने अपनी पुस्तक कैंसर एवं आहार’ में निम्न प्रकार की है –
“It might be a clue to the injurious effect of Comman salt in introducing irritating bacteria into the human body directly operating as a causative facts in Tumour growth.”
चर्मरोग, किडनी के रोग, हृदय रोग, नेत्र रोग में तो नमक न लेने की विशेष सलाह दी जाती है।नमक कम खाने वालों को पसीना कम आता है, प्यास भी कम लगती है। नमक गलाने व सड़ाने के लिये प्रचलित है, आम का अचार नमक डालकर गलाया जाता है।नींबू का अचार भी नमक डालने से ही गलता है।
नमक डालकर जमीन में शव गाड़ते हैं, ताकि शीघ्र सड़ जाये।मिट्टी के बर्तन या पीतल, तांबे के बर्तनों में नमक अधिकदिनों तक पड़ा रहे तो वे सभी गलने लगते हैं।नमक से सदा सावधान रहने की आवश्यकता है,नमक का वाह्य प्रयोग जैसे नमक के पानी के सेक आदिलाभकारी हो सकते हैं किन्तु नमक आहार में निरन्तर लेना उचित नहीं है।
नवजात शिशु के मुंह में यदि नमक भर दिया जाये, तो उसकी मृत्यु निश्चित है।प्राकृतिक चिकित्सक तो नमक को खुलेआम जहर की संज्ञा देते हैं। सफेद नमक, सफेद चीनी, सफेद मैदा, सफेद वनस्पतिघी (रासायनिक तत्वों से साफ करके जमाया हुआ होने से) ये सभी धीमी गति से मारने वाले जहर (Slow Poison) हैं।
सामान्य नमक सोडियम धातु एवं क्लोरिन गैस से बना है ,ये दोनों ही पाचक रसायन रक्त शोधक हैं। इन्हीं के सहारे लोहा लवण अपना कार्य करते हैं, कैल्शियम मैगनेशियम को घुलाकर शरीर के लाभ हेतु यह तत्व उपयोगी है।क्लोरीन भी शरीर के जोड़ों और पेशियों को मलरहित और साफ करता है।
परन्तु ये सभी ताजे फलों साग सब्जियों, मूली, टमाटर, गाजर, नींबू, अनन्नास, खीरा, प्याज, अनार, खजूर इत्यादि में भरपूर मिल जाता है।अतः इसे बाहर से लिए जाने की आवश्यकता नहीं है।
फिर भी एक समय के रात्रिभोज में हल्के नमक के प्रयोग से परहेज नहीं है किंतु हर चीज के साथ अधिक से अधिक नमक का सेवन हानिकारक है। भोजन के साथ अलग से नमक लेकर बैठना भी सर्वथा अनुचित है। दोपहर के अपक्वाहार में केवल हरे पत्तों की चटनी में हल्का नमक लेना उचित है।फलों की चाट में नमक डालकर खाने की आवश्यकता नहीं है।