स्वास्थ्य बाहर से नहीं मिलता, वह तो हमारे अंदर ही रहता है। अपने में स्थित रहना ही ‘स्वास्थ्य’ है।
फिर भी हम बीमार पड़ते हैं और तरह-तरह के रोग हमें परेशान करते रहते हैं।
आखिर इन रोगों का कारण क्या है? शरीर में जमा हुआ मल ही समय पाकर रोग का रूप धारण करता है : Disease is Deficient
मल जमा होने का कारण
मल का जमाव, रोग का कारण और मल का उभार रोग का रूप है। यह जानने के बाद अब यह जानना है कि मल जमा होने का क्या कारण है?
- शक्ति का सम्बंध भोजन से मानकर, श्रम से पहले खाना। भोजन में स्वाद काअनुभव कर, आवश्यकता सेअधिक खाना।
- भोजन से शक्ति समझकर बिना भूख के खाना।
- बिना वितरण के खाना।
जैसे आमदनी से अधिक खर्च करने पर कर्ज हो जाता है, उसी प्रकार पाचन-शक्ति से अधिक भोजन पहुंचने पर जो विकार मल निकालने के अंगों द्वारा पूरा बाहर नहीं निकल पाता, बल्कि भीतर ही रुकने लगता है, वही रोग का कारण है।
शरीर में रोग का कारण मल और दूसरे विकारों का इकट्ठा होना है।
मल दब कर, तह पर तह जमते हुए, जमा होता रहता है। शरीर में विकार दो प्रकार से एकत्रित होते रहते हैं –
- चिकनाई वाले भोजन के कारण।
- अम्लीय या तेजाबी
भोजन के कारण
अम्लीय भोजन चिकनाई युक्त भोजन से अधिक हानिप्रद है।
भोजन : हानिपद-लाभपद
चिकने पदार्थ वे होते हैं जिनमें चिपकन होती है व जिनसे लेही या मांड बन जाता है जैसे मैदा,आटा,चावल,अरबी आदि। इनसे श्लेष्मा बनता है।
गेहूं व चावल में श्लेष्मा और अम्ल दोनों होते हैं, पर दालों में अम्ल की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है,
इसी कारण दालों का भोजन सबसे भारी होता है। तेजाबी अथवा अम्ल वाले पदार्थों में तले–भुने पदार्थों का भी प्रमुख स्थान है।
चालीस पचास वर्ष की उम्र के बाद,
जहां तक हो सके या जहां तक बचा जा सके, दालों, मैदा की बनी चीजों तथा तले भुने पदार्थों से बचना चाहिए.
साथ ही, अन्न का भोजन घटाकर, शाक–सब्जी–फलों की मात्रा बढ़ाना स्वास्थ्य के लिये अच्छा होगा।क्षारीय भोजन में शाक फल श्रेष्ठ हैं।
कमजोरी का कारण
कमजोरी लगने का कारण, शरीर में अधिक तेजाब या अम्ल की मात्रा तथा अन्य जहरीला गंदा माद्दा है, जिसे अंग्रेजी में टासीमिया कहते हैं।
कमजोरी का कारण पौष्टिक भोजन की कमी मानना गलती है।
शरीर में जितना अधिक तेजाब व आंव (mucus) होगी,उतनी ही अधिक कमजोरी लगेगी, उसी
मात्रा में रोगी होने की भी अधिक संभावना होगी।
शरीर से जितना कूड़ा-कबाड़ छंटेगा, उतनी ही ताकत
बढ़ेगी और स्वास्थ्य–लाभ होगा।
मौसम की खराबी व कीटाणुओं से रोग
रोग किसी मौसम की खराबी या किन्हीं बाहर के कीटाणुओं महामारी या छूत के कारण नहीं होते। यदि मौसम के बदलने से रोग आता, तो हरेक आदमी रोगी क्यों नहीं हो जाता?
कुछ लोग हरेक मौसम तथा प्रत्येक परिस्थिति में पूरे स्वस्थ रहते हैं।
दवाएं
दवाएं रोग के लक्षणों को कुछ समय के लिये दबा भले ही दें, वे रोगों की जड़ नहीं मिटा सकती हैं – Medicines are Palliative, Not Curative.
भोजन से शक्ति : एक भ्रम
भोजन शक्ति देता है’, यह आम धारणा सरासर गलत है। भोजन से शक्ति मानने वाला डट -डट कर खूब खायेगा, जरूरत से ज्यादा खाएगा, समय
से पहले खायेगा और बीमार ही पड़ेगा। यदि भोजन से शक्ति पैदा होती तो दिन के अंत में भोजन करने पर शक्ति क्यों नहीं आ जाती? भोजन से जीवनी-शक्ति पैदा नहीं होती। भोजन तो केवल निर्माण का तत्त्व है और टूट-फूट की पूर्ति करता है –
छिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित अति अधम सरीरा ।।
(किष्किंधा.10/4)
वेदों ने भी भोजन को निर्माण का तत्त्व माना है, शक्तिदाता नहीं। सुबह से शाम तक काम करने में कुछ वजन और शक्ति कम होती है।
वजन भोजन से तथा शक्ति गहरी नींद से आती है।शक्ति और स्वास्थ्य तो केवल भगवान् से ही मिलते हैं, भोजन से नहीं।
भोजन तो जीवनी–शक्ति पर भार ही डालता है।
उपवास और वितरण
भोजन के क्रमिक त्याग अथवा युक्तियुक्त उपवास से संचित मल को बाहर निकालकर, शरीर में जीवनी–शक्ति जगाई जा सकती है
और पूर्ण स्वास्थ्य मिल सकता है।उपवास को रामायण में ‘तप‘ कहा है।
तप (उपवास) के साथ ‘वितरण‘ किये बिना रोग सदा केलिये नहीं मिटेंगे और स्वास्थ्य टिकाऊ नहीं रहेगा।
जो बचे सो बंटे
जब ‘तप‘ – उपवास करें या कम खाएं तो ऐसा करने से, जो भोजन की बचत हो, उसे किसी भी प्राणी को भगवान् का अंश समझकर खिला दें।
इसी तरह यदि आपको अधिक सिनेमा देखने की लत हो तो आप सिनेमा देखने में कुछ कमी करें और कम सिनेमा देखने के कारण जो पैसा बचे,
उस पैसे से किसी और को सिनेमा दिखा दें।
साधना की प्रविधि है – कभी कड़ा करना और कभी
ढील देना।
बिना वितरण किये जो रोग उपवास से मिटे थे, वे फिर लौट आयेंगे। रोगों से सदा के लिये छुटकारा पाने के लिये आमदनी के दशांश और भोजन के चतुर्थांश वितरण का नियम दृढ़ता से पालन करना होगा।
भगवान् का भाग न निकालने से बटोरने की प्रवृत्ति बढ़ती है। बुद्धि में भ्रम हो जाने के कारण, गलत रहन सहन और गलत खान पान अपनाने से रोग आते हैं।रोग का कारण दूर कर दो, रोग भाग जायेगा। यह साधना दशांश निकालने से ही शुरू हो सकती है।
खतरनाक रोग मिटाने के लिये तुलादान (रोगी के वजन से एक किलो अधिक गेहूं , साथ में अपना पुराना वस्त्र,
दक्षिणा के साथ, भगवान् की सेवा समझकर
तुलादान लेने वाले व्यक्ति को अर्पित करना ‘तुलादान‘ है।) का नियम भी बड़ा सहायक होता है –
राम कृपा नासहिं सब रोगा ।